चित्रकला (Painting) (225)
Class 10th
Tutor Marked Assignment(2024-25)
प्रश्न 1. (a) फर्श की सजावट से संबंधित दो लोकप्रिय लोक कला रूपों की तुलना करते हुए दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर- फर्श की सजावट से संबंधित दो लोकप्रिय लोक कला रूपों में “रंगोली ” और “मांडना” शामिल हैं।
- डिजाइन: रंगोली में जीवंत रंगों और जटिल पैटन का उपयोग होता है, जबकि मांडना में साधारण रेखाएं और आकृतियां होती हैं।
- उद्देश्य: रंगोली का उद्देश्य घर को सजाना और सौभाग्य लाना है, जबकि मांडना मुख्यतः धार्मिक अवसरों पर किया जाता है।
प्रश्न 2. (b) किसी भी “प्रभाववादी शैली” के कलाकार की पेंटिंग का वर्गीकरण इसकी दो विशेषताएं देते हुए करें।
उत्तर- प्रभाववादी शैली के कलाकार क्लॉड मोनेट की पेंटिंग “वाटर लिलीज़” का वर्गीकरण किया जा सकता है।
- प्रकाश और रंग: मोनेट की पेंटिंग में प्राकृतिक प्रकाश के विभिन्न परिवर्तनों को दर्शाया गया है, जिससे दृश्य में जीवंतता आती है।
- छोटे ब्रश स्ट्रोक: उन्होंने छोटी, अलग-अलग ब्रश स्ट्रोक्स का उपयोग किया है, जिससे रंगों का मिश्रण और गहराई का एहसास होता है।
Watch Full TMA: https://youtu.be/-nTrImUUDww
Contact For TMA PDF: 84487 31058 (WhatsApp)
Painting PDF Link: https://imojo.in/1a0K9nO
प्रश्न 3 (a) “फुलकारी” शब्द की व्याख्या कीजिए तथा कला के रूप में प्रयुक्त एक रूपांकन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर– फुलकारी पंजाब की एक पारंपरिक सुई का काम है। ‘फुल’ का अर्थ फूल होता है और ‘कारी’ का अर्थ कारीगरी होता है। इस कला में कपड़े पर रंगीन धागों से फूलों और अन्य सुंदर डिजाइन बनाए जाते हैं। फुलकारी को आमतौर पर महिलाओं के कपड़ों, जैसे दुपट्टे, ओढ़नी और चादरों पर किया जाता है।
एक रूपांकन का वर्णन: फुलकारी में अक्सर पंजाबी संस्कृति और प्रकृति से जुड़े रूपांकन देखने को मिलते हैं। उदाहरण के लिए, एक आम रूपांकन में मोर को बारीक डिजाइन से दर्शाया जाता है जो खुशी और सौंदर्य का प्रतीक है।
प्रश्न 4 (b) कला के तत्वों और डिजाइन के सिद्धांतों के आधार पर “कांथा सिलाई डिजाइन और रूपांकनों” का वर्णन करें।
उत्तर– कांथा सिलाई डिजाइन और रूपांकन:
- कांथा सिलाई डिजाइन और रूपांकन: कला और डिजाइन का संगम कांथा सिलाई, भारतीय हस्तशिल्प का एक अद्भुत नमूना है, जिसमें कला के तत्व और डिजाइन के सिद्धांत खूबसूरती से समाहित होते हैं।
- रेखाएं: कांथा में रेखाएं विभिन्न आकारों और मोटाई की होती हैं। ये रेखाएं न केवल डिजाइन को परिभाषित करती हैं बल्कि भावनाओं और कहानियों को भी व्यक्त करती हैं। सीधी रेखाएं स्थिरता का बोध कराती हैं, जबकि वक्र रेखाएं गति और लय को दर्शाती हैं।
- आकृतियां: कांथा में विभिन्न आकृतियां जैसे फूल, पत्ते, पशु-पक्षी आदि का प्रयोग होता है। ये आकृतियां प्रकृति से प्रेरित होती हैं और डिजाइन को जीवंत बनाती हैं।
- रंग: कांथा में रंगों का प्रयोग संयमित ढंग से किया जाता है। पारंपरिक रूप से प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो डिजाइन को एक शांत और शांतिपूर्ण रूप देते हैं।
- ताल: कांथा में विभिन्न आकृतियों और रेखाओं को एक खास ताल में व्यवस्थित किया जाता है, जो डिजाइन को एक सामंजस्यपूर्ण रूप देता है।
- पोतः कांथा में विभिन्न प्रकार के कपड़ों का उपयोग किया जाता है, जिससे डिजाइन में पोत की विविधता देखने को मिलती है।
- अंतरालः कांथा में सफेद स्थान का उपयोग भी कलात्मक रूप से किया जाता है। यह सफेद स्थान डिजाइन को और अधिक जीवंत बनाता है। कांथा सिलाई में डिजाइन के सिद्धांत जैसे संतुलन, एकता, विपरीतता आदि का भी पालन किया जाता है। ये सिद्धांत डिजाइन को सौंदर्यपूर्ण और आकर्षक बनाते हैं। इस प्रकार, कांथा सिलाई कला और डिजाइन का एक अद्भुत संगम है, जिसमें भारतीय संस्कृति और परंपराओं का भी झलक मिलता है।
प्रश्न 5 (a) बिष्णुपुर के टेराकोटा तथा हमारे दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली टेराकोटा वस्तुओं के बीच महत्वपूर्ण अंतर के आधार पर एक विश्लेषणात्मक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर– बिष्णुपुर के टेराकोटा और दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले टेराकोटा में अंतर बिष्णुपुर के टेराकोटा और दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले टेराकोटा दोनों ही मिट्टी से बने होते हैं, लेकिन इन दोनों के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं।
बिष्णुपुर के टेराकोटा:
- कलात्मक मूल्य: बिष्णुपुर के टेराकोटा को कला के रूप में देखा जाता है। इनमें जटिल नक्काशी, मूर्तियाँ और भित्तिचित्र होते हैं जो धार्मिक और पौराणिक विषयों को दर्शाते हैं।
- ऐतिहासिक महत्व: ये टेराकोटा मंदिरों और अन्य इमारतों को सजाने के लिए उपयोग किए जाते थे और वे भारतीय कला और वास्तुकला के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- अद्वितीय शैली: बिष्णुपुर के टेराकोटा की अपनी एक विशिष्ट शैली है जो अन्य क्षेत्रों के टेराकोटा से अलग है।
- कार्यः इनका मुख्य कार्य सजावट और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ा हुआ था।
दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले टेराकोटाः
- उपयोगिता: ये टेराकोटा मुख्य रूप से रोजमर्रा के उपयोग के लिए बनाए जाते हैं, जैसे कि बर्तन, खिलौने, और सजावटी वस्तुएं।
- सरल डिजाइन: इनका डिजाइन आमतौर पर सरल होता है और इनमें जटिल नक्काशी 33 कम होती है।
- अंतर का कारणः यह अंतर दोनों के निर्माण के उद्देश्य और उस समय की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों के कारण हो सकता है।
निष्कर्ष
बिष्णुपुर के टेराकोटा और दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले टेराकोटा दोनों ही मिट्टी की कला के उदाहरण हैं, लेकिन इनके निर्माण का उद्देश्य, डिजाइन और कलात्मक मूल्य अलग- अलग हैं। बिष्णुपुर के टेराकोटा को कला के रूप में देखा जाता है जबकि दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले टेराकोटा अधिक व्यावहारिक होते हैं।
Q.6 (b) विभिन्न लोक कला रूपों पर आधारित तस्वीरों को इकट्ठा करें और A3 आकार के कागज पर एक कोलाज बनाएं। फिर, “कला के तत्वों (रेखा, रंग, रूप, बनावट और स्थान आदि) का उपयोग कैसे किया गया है? इस पर एक वर्णनात्मक टिप्पणी लिखें।
उत्तर– एक कोलाज बनाया गया है-
टिप्पणी:
1.लोक कला का एक दृश्य अन्वेषण: क्रिया में कला के तत्व
लोक कला, एक समुदाय की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब है, जो अक्सर सरल लेकिन शक्तिशाली कलात्मक तकनीकों का उपयोग करती है। परंपरा और आवश्यकता में निहित ये तकनीकें कहानियों, भावनाओं और सांस्कृतिक पहचान को व्यक्त करने के लिए कला के तत्वों का रचनात्मक रूप से उपयोग करती हैं। आइए तस्वीरों को हमारे दृश्य मार्गदर्शक के रूप में उपयोग करते हुए देखें कि विभिन्न लोक कला रूपों में इन तत्वों का उपयोग कैसे किया जाता है।
2.रेखा: लोक कला की रीढ़
- भारतीय मधुबनी पेंटिंग: अपने जटिल ज्यामितीय पैटर्न और बोल्ड लाइनों के लिए जानी जाने वाली, मधुबनी कला लय, गति और संरचना की भावना पैदा करने के लिए रेखाओं का उपयोग करती है। प्राकृतिक रंगों में डूबी एक पतली बांस की कलम से खींची गई रेखाएँ सीधी, घुमावदार या टेढ़ी-मेढ़ी हो सकती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना प्रतीकात्मक अर्थ होता है।
- अफ्रीकी बाटिक: बाटिक, एक मोम-प्रतिरोधी रंगाई तकनीक है, जो जटिल पैटर्न और डिज़ाइन के रूप में रेखाओं का उपयोग करती है। कपड़े पर मोम लगाने से बनी रेखाएँ ज्यामितीय, पुष्प या अमूर्त हो सकती हैं, जो अक्सर सांस्कृतिक प्रतीकों या कहानियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- रंग: एक जीवंत अभिव्यक्ति
- मैक्सिकन तालावेरा मिट्टी के बर्तनः तालावेरा मिट्टी के बर्तनों की विशेषता उनके जीवंत रंग हैं, जो अक्सर प्राकृतिक रंगद्रव्य से प्राप्त होते हैं। रंगों का उपयोग जटिल डिजाइन, पैटर्न और दृश्य बनाने के लिए किया जाता है, जो अक्सर धार्मिक विषयों, वनस्पतियों और जीवों को दर्शाते हैं।
- जापानी कोकेशी गुड़िया: पारंपरिक रूप से लकड़ी से बनी कोकेशी गुड़िया को चमकीले, बोल्ड रंगों में रंगा जाता है। रंगों का उपयोग विभिन्न पात्रों, भावनाओं या क्षेत्रीय शैलियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है।
- रूप: त्रि-आयामी रचनाएँ
- अफ्रीकी मुखौटे: औपचारिक अनुष्ठानों और प्रदर्शनों में उपयोग किए जाने वाले मुखौटे, विभिन्न प्रकार के रूप प्रदर्शित करते हैं। कुछ मानव या जानवरों के चेहरों का यथार्थवादी चित्रण होते हैं, जबकि अन्य अधिक अमूर्त या प्रतीकात्मक होते हैं। मुखौटे का रूप अक्सर अनुष्ठान के सांस्कृतिक महत्व और उद्देश्य को दर्शाता है।
- भारतीय मिट्टी की मूर्तियाँ: मिट्टी की मूर्तियाँ, जो अक्सर मंदिरों और घरों में पाई जाती हैं, देवी-देवताओं और पौराणिक प्राणियों को दर्शाती हैं। मूर्ति का रूप वांछित अर्थ और प्रतीकात्मकता को व्यक्त करने के लिए सावधानी से तैयार किया जाता है।
- बनावट: स्पर्शनीय अनुभव
- कपड़ा बुनाई: टेपेस्ट्री और कालीन जैसे वस्त्रों में अक्सर कई तरह की बनावट शामिल होती है। विभिन्न सामग्रियों, बुनाई तकनीकों और पैटर्न का उपयोग करके बनाई गई बनावटों का परस्पर क्रिया, टुकड़े में गहराई, रुचि और अर्थ जोड़ सकती है।
- लकड़ी की नक्काशी: कई संस्कृतियों में पाई जाने वाली लकड़ी की नक्काशी, बनावट की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित करती है। लकड़ी की बनावट, इस्तेमाल की गई नक्काशी तकनीकों के साथ मिलकर खुरदरापन, चिकनाई या जटिल विवरण की भावना पैदा कर सकती है।
- अंतरिक्ष: गहराई का भ्रम
चीनी पेपर कटिंग: पेपर कटिंग, एक नाजुक कला रूप है, जो अक्सर जटिल डिजाइन बनाने के लिए नकारात्मक स्थान का उपयोग करता है। नकारात्मक स्थान, कट-आउट आकृतियों के आसपास के क्षेत्र, सकारात्मक स्थान की तरह ही महत्वपूर्ण हो सकते हैं, जो टुकड़े में गहराई और जटिलता जोड़ते हैं।
निष्कर्ष
ये कुछ उदाहरण हैं कि कैसे कला के तत्वों का उपयोग लोक कला रूपों में किया जाता है। इन तत्वों को समझकर, हम इन कलात्मक परंपराओं की रचनात्मकता, कौशल और सांस्कृतिक महत्व के लिए गहरी सराहना प्राप्त कर सकते हैं।